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Tum kab jaoge atithi

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Tum kab jaoge atithi
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  • आज तुम्हारे आगमन के चतुर्थ दिवस पर प्रश्न बार-बार मन मे घुमड़ रहा है - तुम कब जाओगे, अतिथि ?
  • उस दिन जब तुम आए, तो मेरा दिल किसी अनजानी शंका से धड़क रहा था।इसके बावजूद एक स्नेह-भीगी मुस्कुराहट के साथ मैं तुमसे गले मिला था और मेरी पत्नी ने तुम्हें सादर नमस्ते कि थी। 
  • सिनेमा
  • तुम्हारे सम्मान में ऒ अतिथि, हमने रात के भोजन को एकाएक उच्च-मध्यम वर्ग के डिनर में बदल दिया था।तुम्हें स्मरण होगा कि दो सब्जियों और इसके अलावा हमने मीठा भी बनाया था ।
  • इस सारे उत्साह और लगन के मूल में एक आशा थी | आशा थी कि दूसरे दिन किसी शानदार मेहमाननवाजी की छाप अपने हृदय में ले तुम चले जाओगे। हम तुमसे रुकने के लिए आग्रह करेंगे मगर तुम नहीं मानोगी और एक अच्छे अतिथि के चले जाओगे।
  • पर ऐसा नहीं हुआ। दूसरे दिन भी तुम अपनी अतिथि-सुलभ मुस्कान लिए घर में ही बने रहे । हमने अपनी पीड़ा ली और प्रसन्न बने रहे।हमने फिर दोपहर के भोजन को लंच की गरिमा प्रदान की और रात्रि को तुम्हें सिनेमा भी दिखाया।
  • आखिर तुम कब जाओगे, अतिथि ?
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