एक सूखाग्रस्त गाँव। ज़मीन फटी हुई है और कुएं खाली हैं। एक छोटी लड़की (लगभग 8 साल की) अपनी माँ के साथ एक खाली घड़ा लिए खड़ी है। उनके चेहरे पर चिंता और निराशा है।
"बेटी, पानी के बिना खेती कैसे होगी? और जब खेती नहीं होगी, तो हम खाएंगे क्या? गरीबी हमारी जान ले लेगी।"
"जल संरक्षण की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की किल्लत बढ़ रही है, जिससे गरीबी और भूखमरी का खतरा बढ़ रहा है।"
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अगले दिन। वही लड़की और उसकी माँ गाँव के अन्य लोगों के साथ मिलकर एक नए कुएं के लिए खुदाई कर रहे हैं। गाँव की कुछ अन्य महिलाएं भी इसमें शामिल हैं, और वे पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। एक स्वयंसेवक समूह (जो पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करता है) उन्हें मार्गदर्शन दे रहा है।
हम सबको मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा। पानी बचाना, पेड़ लगाना और पर्यावरण की रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी है। और हां, इस काम में महिलाएं भी उतनी ही सक्षम हैं जितनी पुरुष।"
"गाँव के लोग जल संरक्षण के महत्व को समझते हुए एकजुट होते हैं। लैंगिक समानता को बढ़ावा देते हुए, महिलाएँ भी इस प्रयास में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं।"
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कुछ महीनों बाद। वही गाँव हरा-भरा है। कुआँ पानी से भरा है और खेत लहलहा रहे हैं। लड़की और उसकी माँ मुस्कुरा रही हैं। गाँव के लोग अपनी उपज बेच रहे हैं और उनके जीवन में खुशहाली लौट आई है।
"जल संरक्षण, पर्यावरण के प्रति जागरूकता, लैंगिक समानता और एकजुटता से गाँव ने गरीबी और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को हराया। यह दिखाता है कि जब हम सब मिलकर काम करते हैं, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता।"
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