इन पांच सालो में बर्तन और गहने बेचके घर चलाया है, खाना कम पर रहा। बच्चो ने कई दिनों से सही से खाना तक नहीं खाया।
चिंता में घुलते-घुलते और भूक से मरते-मरते, उन्होंने दम तोड़ दिया।
हर दस-पंद्रह दिन में मेरे पति एक दरख्वास्त देते थे, पर वहा से कोई जवाब नहीं अता था।
स्त्री के परेशानिया सुनने के बाद, नारद मुनि दफ्तर जाते है।
महाराज, आप तो साधु है। कुछ ऐसा नहीं कर सकते की उनका रुका हुआ पेंशन हमें मिल जायें ?
में सरकारी दफ्तर में जाऊंगा और कोशिश करूँगा।
सर जी, अपने भोलेराम के दरख्वास्त के जवाब क्यों नहीं दिए ?
नारद मुनि दफ्तर पहुंचकर, एक सरकारी कर्मचारी के पास गए।
भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थी पर कुछ पैसे नहीं दिए। इसलिए हमने उनके दरख्वास्तों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। पर अगर आप चाहे तो आप उस दूसरे बाबू से जाके बात कर सकते है।
ऐसे ही एक दफ्तर से दूसरे दफ्तर,एक बाबो से दूसरे बाबू घूम अये। पर कुछ नहीं हुआ, तब एक चपरासी ने बोला की बड़े साहब के पास जाने से परेशानी का उपाए मिलेगा।
बाबू , क्या आप कृपया भोलाराम का पेंशन शुरू करवा सकते हैं?
उन्होंने थोड़ा सोच-विचार किया और अपना विणा उस बाबू को दे दी।
भोलाराम!!!!!
है! तो क्या नाम बताया आपने?
नारद ने भोलेराम को बोलै,
भोलेराम, में नारद बोल रहा हु, में तुम्हे स्वर्ग ले जाने आया हु।
मुझे नहीं जाना। में तो पेंशन के दरख्वास्तों में अटका हुआ हु। यही मेरा मन लगा हैं । मैं अपनी पेंशन की दरख्वास्तें छोड़कर नहीं जा सकता।
अगर आप चाहते हैं की भोलाराम का पेंशन का काम हो जाये,आपको थोड़ा वजन देना पड़ेगा, यानि की पैसे। पर आपका वीणा भी चलेगा, मेरी बेटी गाना सीखती हैं, में उसे दे दूंगा। फिर आपका काम हो जाएंगे।
तभी फाइल के अंदर से आवाज़ ए, "कौन है? क्या पोस्टमैन आया हैं? क्या मेरा पेंशन मिल गया?" यहा सुनकर नारद सब समझ गए और बोले- " भोलेराम! क्या ये भोलेराम की जीव हैं?" आवाज़ ए - "है"
आजीवन सेवा करने के पश्चात भी व्यक्ति को अपना हक़ यानी की पेंशन के लिए संघर्ष करना पड़ता है और यह संघर्ष उसके जीवन में इतना अहम् महत्व रखने लगता है की मरने के बाद भी उसकी आत्मा स्वतंत्र नहीं हो पति।