एक गाँव में एक लकड़हारा रहता था। उसके पास लोहे की कुल्हाड़ी थी। वह प्रतिदिन लकड़ियां काटता था और उसी लकड़ी को बाजारों में बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था।गांव के पास नदी बहती थी। नदी के किनारे एक जंगल था। एक दिन लकड़हारा जंगल में लकड़ी काटने गया। अचानक लकड़हारे की कुल्हाड़ी नदी में गिर गई। लकड़हारा चिंता से टूट गया। क्योंकि वह बिना कुल्हाड़ी के लकड़ी नहीं काट सकता था और यदि वह प्रतिदिन ऐसा नहीं कर सकता तो वह अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करेगा। तब उसकी पत्नी और बच्चे भूखे रह जाते थे।
जल की देवी लकड़हारे की सच्चाई से प्रसन्न हुई। उसने ये तीनों कुल्हाड़ी लकड़हारे को दे दी। उसके बाद लकड़हारे की कोई कमी नहीं रही।
उस समय जल की देवी नदी से उनके पास आती हैं। उसके हाथ में चांदी की कुल्हाड़ी थी। जल की देवी ने लकड़हारे से पूछा,
हाँ यह मेरी है
नहीं, ये मेरा कुल्हाड़ियाँ नहीं है।
क्या ये अक्ष आपकी हैं?
तो क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?
"लकड़हारे और पानी की देवी" की इस कहानी से हमें पता चला है कि ईमानदारी एक महान गुण है। ईमानदार लोगों को सभी पसंद करते हैं। देवता भी उन्हें प्यार करते हैं। इसलिए हमें ईमानदार होना चाहिए।
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