गाँव में हरिहर काका की चर्चा होने लगी। काका के भाई उनकी जमीन अपने नाम लिखवाना चाहते थे। लेकिन हरिहर काका के सामने ऐसे कई उदहारण थे, जिन्होंने अपने जीते जी जमीन परिवार के नाम कर दी और बाद में पछताते रहे। महंत इसका उपाय सोचने लगे। एक दिन महंत ने योजना बनाकर काका का अपहरण करवा दिया। हरिहर काका के भाइयों और गाँवों के लोगों को जब खबर लगी, तब सभी ठाकुरबारी जा पहुँचे। उन्होंने पुलिस को बुला लिया। मंदिर के अंदर महंत एवं उसके आदमियों ने काका से ज़बरदस्ती कागजों पर अंगूठे के निशान ले लिए। पुलिस ने बहुत मुश्किल से मंदिर के दरवाजे का ताला तोड़कर देखा, तो काका रस्सियों से बंधे मिले। उनके भाई उन्हें घर ले गए और उनका बहुत ध्यान रखने लगे।
कुछ दिनों बाद उन पर फिर भी दवाब डाला जाने लगा कि वे अपनी जमीन अपने भाइयों के नाम कर दें। हरिहर काका के भाइयों ने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया कि सीधे तरीके से तुम हमारे नाम जमीन कर दो, नहीं तो मार कर यहीं घर में गाढ़ देंगे और गाँवों वालों को पता भी नहीं चलेगा। हरिहर काका के इनकार करने पर उनके भाइयों ने उन्हें मरना-पीटना शुरू कर दिया।काका अपनी मदद के लिए चिल्लाने लगे और काका की आवाज़ सुनकर सभी गाँव वाले इकट्ठा हो गए। महंत को खबर लगते ही वह पुलिस लेकर वहाँ आ पहुँचा। पुलिस ने काका को मुक्त करवाकर उनका बयान लिया। काका ने बताया कि मेरे भाइयों ने ज़बरदस्ती कागज़ों पर मेरे अंगूठे के निशान लिए हैं। काका ने पुलिस से सुरक्षा की माँग की। अब हरिहर काका घर से अलग अपना जीवन बीता रहे हैं। उन्होंने अपनी सेवा के लिए एक नौकर भी रख लिया और पुलिसकर्मी भी उन्हें सुरक्षा दे रहे हैं और उनके ही पैसों पर मौज कर रहे हैं।
एक दिन हरिहर काका के सामने नेताजी ने प्रस्ताव रखा कि वह अपनी जमीन पर ‘हरिहर उच्च विद्यालय’ खोल दें पर काका ने साफ इनकार कर दिया। अब गाँव के सभी लोग सोचते हैं कि काका की मृत्यु के बाद महंत साधुओं- संत को बुलाकर जमीन पर कब्जा कर लेगा। अब हरिहर काका मौन होकर अपनी जिंदगी काट रहे हैं। काका गूंगेपन का शिकार हो गए हैं। कोई बात कहो, कुछ पूछो, कोई जवाब नहीं। खुली आँखों से बराबर आकाश को निहारा करते हैं। सारे गाँव के लोग उनके बारे में बहुत कुछ कहते-सुनते हैं, लेकिन उनके पास अब कहने के लिए कोई बात नहीं।