समुद्र के किनारे ऊँचे पर्वत की अँधेरी गुफा में एक साँप रहता था। समुद्र की तूफ़ानी लहरें धूप में चमकतीं, झिलमिलातीं और दिन भर पर्वत की चट्टानों से टकराती रहती थीं।
बाज ने एक लंबी आह भरी ऐसा ही दिखता है कि आखिरी यहाँ आ पहुँची है लेकिन मुझे कोई शिकायत नहीं है। मेरी जिंदगी भी खूब रही भाई जी भरकर उसे भोगा है। जब तक शरीर में ताकत रही. कोई सुख ऐसा नहीं बच्चा जिसे न भोगा हो। दूर-दूर तक उड़ाने भरी हैं. आकाश की असीम ऊँचाइयों को अपने पंखों से नाप आया हूँ। तुम्हारा बड़ा दुर्भाग्य है कि तुम जिंदगी भर आकाश में उड़ने का आनंद कभी नहीं उठा पाओगे।साँप बोला- “आकाश! आकाश को लेकर क्या मैं चाहूँगा। आकाश में आखिर रखा क्या है? क्या मैं तुम्हारे आकाश में रेंग सकता हूँ ना भाई, तुम्हारा आकाश तुम्हें ही मुबारक, मेरे लिए तो यह गुफा भली। इतनी आरामदेह और सुरक्षित जगह और कहाँ होगी?साँप मन ही मन बाज की मूर्खता पर हँस रहा था। वह सोचने लगा किआखिर उड़ने और रेंगने के बीच कौन-सा भारी अंतर है। अंत में तो सबके भाग्य में मरना ही लिखा है शरीर मिट्टी का है, मिट्टी में ही मिल जाएगा। अचानक बाज ने अपना झुका हुआ सिर ऊपर उठाया और उसकी दृष्टि साँप की गुफा के चारों ओर घूमने लगी। चट्टानों में पड़ी दरारों से पानी गुफा में उपक खा था। सीलन और अँधेरे में दूबी गुफा में एक भयानक दुर्गंध फैली हुई थी. मानो कोई चीज वर्षों से पड़ी पड़ी सड़ गई हो।
अपनी गुफा में बैठा हुआ साँप सब कुछ देखा करता - लहरों का गर्जन, आकाश में छिपती हुई पहाड़ियाँ, टेढ़ी-मेढ़ी बल खाती हुई नदी की गुस्से से भरी आवाजें । वह मन ही मन खुश होता था कि इस गर्जन-तर्जन के होते हुए भी वह सुखी और सुरक्षित है। कोई उसे दुख नहीं दे सकता। सबसे अलग, सबसे दूर, वह अपनी गुफा का स्वामी है। न किसी से लेना, न किसी से देना। दुनिया की भाग-दौड़, छीना-झपटी से वह दूर है। साँप के लिए यही सबसे बड़ा सुख था।
एक दिन एकाएक आकाश में उड़ता हुआ खून से लथपथ एक बाज साँप की उस गुफा में आ गिरा। उसकी छाती पर कितने ही जख्मों के निशान थे, पंख खून से सने थे और वह अधमरा-सा जोर-शोर से हाँफ रहा था। ज़मीन पर गिरते ही उसने एक दर्द भरी चीख मारी और पंखों को फड़फड़ाता हुआ धरती पर लोटने लगा। डर से साँप अपने कोने में सिकुड़ गया। किंतु दूसरे ही क्षण उसने भाँप लिया कि बाज जीवन की अंतिम साँसें गिन रहा है और उससे डरना बेकार है। यह सोचकर उसकी हिम्मत बँधी और वह रेंगता हुआ उस घायल पक्षी के पास जा पहुँचा।
साँप ने सुना, लहरें मधुर स्वर में गा रहा है।हमारा यह गीत उन साहसी लोगों के लिए है जो अपने प्राणों को हथेली पर रखे हुए घूमते हैं। चतुर वहीं है जो प्राणों की बाजी लगाकर शिंदगी के हर खतरे का बहादुरी से सामना करे। ओ निडर बाज! शत्रुओं से लड़ते हुए तुमने अपना कीमती रक्त बहाया है। परवह समय दूर नहीं है, जब तुम्हारे खून की एक-एक बूंद जिंदगी के अँधेरे मेंप्रकाश फैलाएगी और साहसी, बहादुर दिलों में स्वतंत्रता और प्रकाश के लिए प्रेमपैदा करेगी।
साँप सोचने लगा कि बाज अभागा था जिसने आकाश की आजादी को प्राप्त करने में अपने प्राणों की बाज़ी लगा दी। किंतु कुछ देर बाद साँप के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। उसने सुना, चट्टानों के नीचे से एक मधुर, रहस्यमय गीत की आवाज़ उठ रही है। पहले उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। किंतु कुछ देर बाद गीत के स्वर अधिक सान सुनाई देने लगे। वह अपनी गुफा से बाहर आया और चट्टान से नीचे झाँकने लगा। सूरज की सुनहरी किरणों में समुद्र का नीला जल झिलमिला रहा था। चट्टानों को भिगोती हुई समुद्र की लहरों में गीत के स्वर फूट रहे थे। ल
तुमने अपना जीवन बलिदान कर दिया किंतु फिर भी तुम अमर हो। जब कभी साहस और वीरता के गीत गाए जाएँगे. तुम्हारा नाम बड़े गर्व और श्रद्धा से लिय जाएगा।“हमारा गीत जिंदगी के उन दीवानों के लिए है जो मर कर भी मृत्यु से नहीं डरते।